20 आंसू शायरी, अश्क़ शायरी

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20 आंसू शायरी, अश्क़ शायरी


दो चार आँसू ही आते हैं पलकों के किनारे पे
वर्ना आँखों का समंदर गहरा बहुत है

लगता है मैं भूल चुका हूँ मुस्कुराने का हुनर
कोशिश जब भी करता हूँ आँसू निकल आते हैं

पिरो दिये मेरे आँसू हवा ने शाखों में
भरम बहार का वाकी रहा आँखों में

जब लफ्ज़ थक गए तो फिर आँखों ने बात की
जो आँखें भी थक गयीं तो अश्कों से बात हुई

उसका अक्स दिल में इस कदर बसा है
बरसों आँसू बहे मगर तसवीर न धुली

आ देख मेरी आँखों के ये भीगे हुए मौसम,
ये किसने कह दिया कि तुम्हें भूल गये हम

अश्क़ ही मेरे दिन हैं अश्क़ ही मेरी रातें
अश्कों में ही घुली हैं वो बीती हुयी बातें

समंदर में उतरता हूँ तो आँखें भीग जाती हैं
तेरी आँखों को पढ़ता हूँ तो आँखें भीग जाती हैं
तुम्हारा नाम लिखने की इजाज़त छिन गई जबसे
कोई भी लफ्ज़ लिखता हूँ तो आँखें भीग जाती हैं

आज अश्क से आँखों में क्यों हैं आये हुए
गुजर गया है ज़माना तुझे भुलाये हुए

वो अश्क बन के मेरी चश्म-ए-तर में रहता है
अजीब शख़्स है पानी के घर में रहता है

प्यास इतनी है मेरी रूह की गहराई में
अश्क गिरता है तो दामन को जला देता है

हर रात रो-रो के उसे भुलाने लगे
आंसुओं में उस के प्यार को बहाने लगे
ये दिल भी कितना अजीब है कि
रोये हम तो वो और भी याद आने लगे

तू इश्क की दूसरी निशानी दे दे मुझको
आँसू तो रोज गिर कर सूख जाते हैं

टपक पड़ते हैं आँसू जब तुम्हारी याद आती है
ये वो बरसात है जिसका कोई मौसम नहीं होता

न जाने कौन सा आँसू मेरा राज़ खोल दे
हम इस ख़्याल से नज़रें झुकाए बैठे हैं

शायद तू कभी प्यासा फिर मेरी तरफ लौट आये
आँखों में लिए फिरता हूँ दरिया तेरी खातिर

ये तो अच्छा है कि आँसू बे रंग हुआ करते है
वरना रातों को भीगे तकिये सारे राज़ खोल देते

आंसू मेरे देखकर तू परेशान क्यों है ऐ दोस्त
ये वो अल्फाज हैं जो जुबान तक आ न सके
वहाँ से पानी की एक बूँद भी न निकली
तमाम उम्र जिन आँखों को झील लिखते रहे

कौन कहता है कि
आंसुओं में वज़न नहीं होता
एक भी छलक जाता है
तो मन हल्का हो जाता है

अभी से क्यों छलक आये तुम्हारी आँख में आँसू
अभी छेड़ी कहाँ है दास्तान ए ज़िंदगी मैंने

ना जाने आखिर इन आँसूओ पे क्या गुजरी,
जो दिल से आँख तक आये मगर बह ना सके


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